क्या स्वास्थ्य बीमा पर गुमराह कर रही है सरकार
सेहतराग टीम
केंद्र सरकार ने इस वर्ष बजट में देश की 40 फीसदी गरीब आबादी के लिए मेगा स्वास्थ्य योजना घोषित की है मगर यह योजना घोषणा के साथ ही विवाद में आ गई है। दरअसल इसकी वजह है योजना के लिए बजट में आवंटित की गई राशि। केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने इस मद में सिर्फ 2000 करोड़ रुपये का आवंटन किया है जबकि विशेषज्ञों का कहना है कि इतनी बड़ी योजना के लिए यह राशि ऊंट के मुंह में जीरा है।
प्रीमियम की राशि पर विवाद
दरअसल यह योजना देश के 10 करोड़ परिवारों के लिए प्रति परिवार 5 लाख रुपये की स्वास्थ्य बीमा मुहैया कराने की बात करती है यानी जरूरत पड़ने पर इन परिवारों के लिए निर्धारित अस्पतालों में पांच लाख रुपये तक इलाज पर खर्च पाएंगे और इस राशि का भुगतान बीमा कंपनियों की ओर से किया जाएगा। अब अगर हिसाब लगाया जाए तो पांच लाख के हिसाब से 10 करोड़ परिवारों की कुल बीमा राशि 50 लाख करोड़ रुपये होती है। बीमा सेक्टर में सबसे कम प्रीमियम भी कम से कम दो फीसदी का है यानी कुल बीमा राशि का दो फीसदी हिस्सा प्रीमियम देकर कोई भी स्वास्थ्य बीमा करा सकता है। इस दर से 50 लाख करोड़ रुपये बीमा राशि का प्रीमियम 1 लाख करोड़ रुपये पहुंचता है।
क्या कहते हैं विशेषज्ञ
ये तथ्य नेशनल इंस्टीट्यूट आफ पब्लिक फाइनेंस एंड पालिसी ने इस मेगा स्वास्थ्य योजना के विभिन्न पहलुओं की जांच के बाद सामने रखा है। एनआईपीएफपी की सहायक प्रोफेसर मीता चौधरी ने ‘केंद्रीय बजट 2018 में राष्ट्रीय स्वास्थ्य सुरक्षा योजना: क्या यह सही दिशा में है?’ शीर्षक से अपना शोधपत्र जारी किया है। इसमें कहा है कि इस योजना से न केवल केंद्र एवं राज्यों के सरकारी खजाने पर भारी बोझ पड़ेगा बल्कि इससे इस क्षेत्र में नीति बनाने को लेकर राज्यों की स्वायत्ता भी प्रभावित होगी क्योंकि संविधान में स्वास्थ्य का क्षेत्र राज्य के अधिकार क्षेत्र में है।
मीता चौधरी के अनुसार, मोटे तौर पर अगर कुल बीमा राशि के लिये प्रीमियम दो प्रतिशत भी माना जाए तो योजना की लागत 1,00,000 करोड़ रुपये सालाना होगी। अगर केंद्र का हिस्सा 60 फीसदी माना जाए तो इसके लिए 60 हजार करोड़ रुपये की जरूरत होगी। दूसरी ओर केंद्रीय बजट में स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण तथा आयुष मंत्रालय का कुल बजट ही 55 हजार करोड़ रुपये का है।
सरकार का क्या है कहना
यानी इस योजना के लिए सिर्फ 2 हजार करोड़ का आवंटन सिर्फ छलावा माना जा सकता है। दूसरी ओर नीति आयोग के सलाहकार आलोक कुमार ऐसा नहीं मानते। उनका कहना है कि बीमा कंपनियों में इस योजना में भागीदारी के लिए प्रतिस्पर्धा होगी जिसके कारण प्रीमियम काफी कम हो जाएगा। उनका कहना है कि इस योजना में कुल खर्च 10,000 से 12,000 करोड़ रुपये सालाना आएगा।
नीति आयोग के ही एक अन्य सदस्य तथा इस योजना को तैयार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले विनोद कुमार पाल ने कहा है कि एक प्रतिशत स्वास्थ्य एवं शिक्षा उपकर से प्राप्त राजस्व योजना की लागत को पूरा करने के लिये पर्याप्त होगा।
बजट में और क्या उपाय
नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार का कहना है कि बजट में एक प्रतिशत अतिरिक्त शिक्षा तथा स्वास्थ्य उपकर के प्रस्ताव से सालाना 11,000 करोड़ रुपये की प्राप्ति होगी। राष्ट्रीय स्वास्थ्य योजना के लिए 2000 करोड़ रुपये का बजटीय आवंटन है और इसके अलावा स्वास्थ्य क्षेत्र में 6 हजार करोड़ रुपये का अतिरिक्त प्रावधान किया गया है। इन सभी को मिलाकर इस योजना का काम आराम से पूरा हो जाएगा।
सरकार का दावा जो भी हो मगर यह देखना होगा कि क्या निजी क्षेत्र सच में प्रीमियम की दरें वर्तमान दरों के दसवें हिस्से के बराबर कर देगा?
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